गुम हुई शाम

गुम हुई शाम


आजकल दिन के बाद सिर्फ रात होती है
बरसों बीते अब नहीं कोई शाम होती है
जब सूरज दूर पहाड़ियों के पीछे छुप जाता था
हाथ में गर्म चाय का प्याला सुकून दिलाता था।

जिंदगी की भाग दौड़ में वो शाम गुम हो गई
जिंदगी बस सड़क के इस छोर से उस छोर हो गई
कहने को आज भी वो शाम मस्तानी आती होगी
कोई गोरी अपने साजन के संग बतियाती होगी।

रोजी रोटी की मशक्कत में अब दिन रात मिलते हैं
ऐसे में भला महफिलों के ठहाके कहां जमते हैं
सुबह से रात तलक चलती रहती है खींचतान
बामुश्किल ढक लेते हैं अगर सर को,
घुटनों को मोड़कर बचाते हैं चादर की शान।

आम आदमी इतना आम है कि आम भी खास हो चला
नून तेल लड़की मिल जाए, बस यही है एक मसला
इसी मसले के नीचे उसकी शख्सियत मसली जाती है
उसके हिस्से की शाम रात की गर्त में खो जाती है।

आभार – नवीन पहल – २२.०५.२०२२ 🙏🙏

# प्रतियोगिता

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9 Comments

Abhinav ji

23-May-2022 09:57 PM

Nice👍

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Shrishti pandey

23-May-2022 10:31 AM

Nice

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Punam verma

23-May-2022 10:30 AM

Nice

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